बुधवार, 10 जून 2009

बस्ते का बोझ बच्चों की उन्नति में बाधक या साधक

बाधक

"बार -बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
गया, ले गया ,तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी "

बचपन भी कितना ?सिर्फ़ तीन -चार साल .....बस इधर स्कूल का बस्ता पीठ पर चड़ा और उधर बचपन खिसका .......क्यों हुआ मेरे साथ ऐसा .......?कभी सोचा है आपने .....माता -पिता ने .......अभिभावकों ने ....सरकार ने .......?किसी ने भी नही सोचा उन्हें तो एक पढा -लिखा नागरिक चाहिए यह देखने की उन्हें आवश्यकता ही नही कि भविष्य का नागरिक कैसे पढ़ रहा है ?......कैसे जी रहा है ? बचपन की नाजुक उम्र में ही मजदूर की तरह पीठ पर बस्ता लाद दिया और हांक दिया स्कूल की ओर जहाँ भेड़ बकरियों की तरह बच्चे कक्षा रुपी बाढे में भर दिए गए

और .............बच्चा रोता रहा ....रोता रहा .........छिन गए खिलौने ....छिन गया बचपन आगया बस्ता .......आ गयी किताबें ....और ढेर सारा पाठ्यक्रम कक्षा पांच और विषय दस ....२० किताबें और २० कॉपियां ,दस पाठ्य पुस्तकें ,दस अभ्यास पुस्तकें छोटी सी जान,छोटा सा शरीर ,भोला मस्तिष्क और भरी बस्ता

इस भारी बस्ते ने हमारा बचपन ही छीन लिया खेलने का वक्त नही मिलता ,शैतानियाँ करने के लिए भी समय का आभाव है जब कभी कक्षा में अध्यापिका के आने से पहले कुछ शरारत करते भी हैं तो उनके आते ही डाट खाते हैं पहले अनुशासन पर लेक्चर सुनते हैं फ़िर पाठ पर .....सब कुछ इतना घुलमिल जाता है कि न पाठ समझ आता है न अनुशासन

समय का महत्व सभी समझाते हैं -समय पर कार्य करो ,समय का सदुपयोग करो अब आप ही देखिये मेरी समय सारिणी -७.३० से १.३० तक स्कूल में अर्थात ६घन्ते स्कूल में ,३घन्ते स्कूल आने -जाने और तैयार होने के ४ घंटे स्कूल का होम वर्क अर्थात गृह कार्य के आधा घंटा मित्रों से बात करने के क्योंकि होमवर्क भूल जाता हूँ आधा घंटा टी.वी .देखने का ९घन्ता सोने के लिए अब आप ही बताईए कि मैं कब -खातापीता हूँ इस प्रतियोगिता के लिए भी बंक मार कर आया हूँ
कक्षा ५ तक तो सरकार की मेहरवानी से पास होता गया जब कक्षा ६ मेंआया तब होश ठिकाने आए कि मुझे तो कुछ भी नही आता इस बस्ते के बोझ ने न मुझे पढ़ने दिया न खेलने ही बस इसे लादे रहने की आदत हो गयी है इसके बिना मुझे अधूरापन लगता है यह मेरी पीठ का साथी बन गया है मझे नीद भी तभी आती है जब मम्मी पीठ पर वजन रखती है
एक बच्चे का सम्पूर्ण विकास तभी हो सकता है जब वह स्वच्छंद वातावरण में पले- bआढे बच्चे की पढाई के लिए आवश्यकता है प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण वातावरण की ,जहाँ पानी की कलकल सुने तो पक्षियों की चहचहाहट भी समझे ,जहाँ हवा की सरसराहट होऔर फूलों की महक हो ,बच्चों की खिलखिलाहट हो प्रकृति के नजदीक ही वह जीवन की पढाई पढे जिससे वह संसार और सृष्टि से परिचित हो ,उसकी सुन्दरता से रूबरू हो
आज के बोझिल वातावरण में ,प्रतियोगिताओं की होड़ में वह कही दब सा गया है आज बच्चे पर सिर्फ़ बस्ते का ही बोझ नही है ,उस पर माता -पिता की आकाँक्षाओं का बोझ भी है अभिभावकों के सामाजिक स्तर को बढाने का उत्तर दायित्व भी है इन सब को उसका बाल मन संभाल नही पाताऔर वह आगे बढ़ने की अपक्षा मौत को गले लगाना श्रेयकर समझने लगता ही
प्रतिदिन अख़बारों में दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों में इससे सम्बन्धित समाचार आते ही रहते हैं कहीं कोई बच्चा फेल होने पर ऊँची इमारतों से छलांग लगा देता है तो कोई पंखे से लटक जाता है कोई जहर खा लेता है तो कोई रेल की पटरियां नाप लेता है बच्चे का जीवन समाप्त हो जाता है माता -पिता जीते हुए भी मुर्दे के समान हो जाते हैं ,लेकिन शिक्षा नीति बनाने वालों के कानों पर जूं नहीं रेंगती इन हालातों पर न वे ध्यान देते हैं न सरकार
शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए बच्चे का चारित्रिक विकास करना जो आज किताबी बातें रह गईं हैं चारों ओर छाए भ्रष्टाचार बच्चे के जीवन को निराशा और हताशा से भर दिया है वह निश्चित ही नही कर पाता कि किस रास्ते पर चले
यह सच है कि वह किताबों के बोझ के चाबुक से वह अपना रास्ता जल्दी तै कर लेता है ,लेकिन हो सकता है कि वह मंजिल से पहले ही दम तोड़ दे इसलिए मैं अनुरोध करता हूँ कि इस ओर कुछ सार्थक कदम उठाए जांए जिससे बच्चे का चहुमुखी विकास हो वह सिर्फ़ ज्ञान की मशीन बन कर न रह जाए बस्ते के बोझ को आप ज्ञान की अधिकता समझने की भूल न करें -
मेरा शरीर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था ,तुम्हे धोखा हुआ होगा
"
समाप्त

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