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गुरुवार, 11 जून 2009

निरंतर होता सरलीकरण शिक्षा का स्तर गिरा रहा है -विपक्ष

विपक्ष

"अभी तो सहर है ,जरा सुबह तो होने दो ,
अभी तो आगाज है ,अंजाम क्यों सोचने लगे "

दिन दिन शिक्षा का बदलता स्वरूप अपने साथ कई विवाद लेकर आता है आरक्षण का ,कभी परीक्षाओं का ,कभी भाषा का एसा ही एक विवाद हमारी आज की वादविवाद प्रतियोगिता का शीर्षक बन कर हमारे सम्मुख आया है कि निरंतर होता सरलीकरण शिक्षा का स्तर गिरा रहा है श्रोताओ ,मैं इस बात से कतई सहमत नही हूँ बदलाव तो नियति का नियम है ,फ़िर हर सदी में कोई न कोई बदलाव तो होता ही है लेकिन जिस बदलाव को समाज मान्यता दे ,जो सबके हित के लिए हो ,उसे नकारना क्यों ?

हर चीज के दो पहलू होते हैं मनुष्य की प्रवृति यही रही है कि वह गलत चीज को जल्दी ग्रहण करता है इसलिए आवश्यक है कि सही रुख को विस्तार से जाना जाए सरलीकरण से हमें अनेक लाभ हुए हैं -विद्यार्थियों की पढाई में रूचि बढ़ना जो विद्यार्थी शिक्षा जटिल होने के कारण शिक्षा से जी चुराते थे ,अब उनका पढाई में मन लगाने लगा है उनमें प्रतिस्पर्धा करने का उत्साह भी जागा है
पढना आसान होगया है ,यह जानकर ग्रामीण भी आगे आएँगे वे पढाई में अपनी रूचि दिखाएंगे ,जिससे साक्षरता का प्रचार भी बढेगा और आर्थिक क्षेत्र में उन्नति भी होगी सरलीकरण के अंतर्गत पाठ्यक्रम में अनेक सुधार किए गएजिससे विद्यार्थी को पढ़ने में सुविधा हुई उन पर पढाई बोझ न पडे जिससे वे उदासीन हो जाएँ उदासीनता के कारण कुछ विद्यार्थी अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते हैं ,या पढाई छोड़ कर गलत रास्ते पर भटक कर अपना जीवन तथा अपने अभिभावकों की उम्मीदे दांव पर लगा देते हैं
यदि सरलीकरण न होता तो रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थ संस्कृत में ही पढे जाते तो सबकी समझ में न आते कितने ही आयुर्वेदिक नुस्खों ,शास्त्रों से हम अपरिचित ही रह जाते
सरलीकरण से बेरोजगारी की समस्या भी कुछ हद तक हल होगी ७०% अंक लाने वाले विद्यार्थी ८०-९०%अंक से उत्तीर्ण होंगे और नौकरी के अवसर बढेंगे
आप ही बताईए सरलीकरण के इतने लाभ होने के बावजूद उसे नकारना कहाँ की समझदारी है ?क्यों कुछ लोग शिक्षा के स्तर का बहाना बना कर विद्यार्थियों पर मायूसी और परेशानियों का बोझ डालना चाहते हैं ?कुछ लोग नही चाहते कि आज का विद्यार्थी आत्म विश्वास के बल पर जिन्दगी में आगे बढे वे आज के युग में भी लकीर के फकीर बने बैठे हैं मेरे विपक्षी मित्र का कहना कि सरलीकरण से विद्यार्थी मेहनती नही रहे ,गलत है मित्र सरलीकरण तो एक डोर है जिसके सहारे विद्यार्थी जीवन में आगे बढ़ सकता है आज के इस तेज रफ्तार के युग में सरलीकरण विद्यार्थी के लिए वह मित्रोरेल है जिसके सहारे वह सरलता सुगमता ,से अपनी मंजिल प्राप्त कर सकता है
आज हमारा देश हर क्षेत्र में प्रगतिशील है फ़िर शिक्षा के क्षेत्र में क्यों पिछडे ?क्यों वही क से कमल पर अटके रहें ,क से कर्मयोगी भी होता है सच्चा कर्मयोगी वही होता है जो सरलीकरण को अपनी वैसाखी नही अपितु अपना नया हथियार बना कर कर्मक्षेत्र में विजय प्राप्त करे
सरलीकरण की इस नई नीति के साथ ही हम नए युग से जुड़ सकेंगे
"आज पुरानी जंजीरों को तोड़ चुके हैं
क्यों देखें उस मंजिल को जो छोड़ चुके हैं
नया दौर है ,नई उमंगे ,अब है नई कहानी
युग बदला ,बदलेगी नीति ,बदली रीति पुरानी
"
समाप्त

बुधवार, 10 जून 2009

बस्ते का बोझ बच्चों की उन्नति में बाधक या साधक

बाधक

"बार -बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
गया, ले गया ,तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी "

बचपन भी कितना ?सिर्फ़ तीन -चार साल .....बस इधर स्कूल का बस्ता पीठ पर चड़ा और उधर बचपन खिसका .......क्यों हुआ मेरे साथ ऐसा .......?कभी सोचा है आपने .....माता -पिता ने .......अभिभावकों ने ....सरकार ने .......?किसी ने भी नही सोचा उन्हें तो एक पढा -लिखा नागरिक चाहिए यह देखने की उन्हें आवश्यकता ही नही कि भविष्य का नागरिक कैसे पढ़ रहा है ?......कैसे जी रहा है ? बचपन की नाजुक उम्र में ही मजदूर की तरह पीठ पर बस्ता लाद दिया और हांक दिया स्कूल की ओर जहाँ भेड़ बकरियों की तरह बच्चे कक्षा रुपी बाढे में भर दिए गए

और .............बच्चा रोता रहा ....रोता रहा .........छिन गए खिलौने ....छिन गया बचपन आगया बस्ता .......आ गयी किताबें ....और ढेर सारा पाठ्यक्रम कक्षा पांच और विषय दस ....२० किताबें और २० कॉपियां ,दस पाठ्य पुस्तकें ,दस अभ्यास पुस्तकें छोटी सी जान,छोटा सा शरीर ,भोला मस्तिष्क और भरी बस्ता

इस भारी बस्ते ने हमारा बचपन ही छीन लिया खेलने का वक्त नही मिलता ,शैतानियाँ करने के लिए भी समय का आभाव है जब कभी कक्षा में अध्यापिका के आने से पहले कुछ शरारत करते भी हैं तो उनके आते ही डाट खाते हैं पहले अनुशासन पर लेक्चर सुनते हैं फ़िर पाठ पर .....सब कुछ इतना घुलमिल जाता है कि न पाठ समझ आता है न अनुशासन

समय का महत्व सभी समझाते हैं -समय पर कार्य करो ,समय का सदुपयोग करो अब आप ही देखिये मेरी समय सारिणी -७.३० से १.३० तक स्कूल में अर्थात ६घन्ते स्कूल में ,३घन्ते स्कूल आने -जाने और तैयार होने के ४ घंटे स्कूल का होम वर्क अर्थात गृह कार्य के आधा घंटा मित्रों से बात करने के क्योंकि होमवर्क भूल जाता हूँ आधा घंटा टी.वी .देखने का ९घन्ता सोने के लिए अब आप ही बताईए कि मैं कब -खातापीता हूँ इस प्रतियोगिता के लिए भी बंक मार कर आया हूँ
कक्षा ५ तक तो सरकार की मेहरवानी से पास होता गया जब कक्षा ६ मेंआया तब होश ठिकाने आए कि मुझे तो कुछ भी नही आता इस बस्ते के बोझ ने न मुझे पढ़ने दिया न खेलने ही बस इसे लादे रहने की आदत हो गयी है इसके बिना मुझे अधूरापन लगता है यह मेरी पीठ का साथी बन गया है मझे नीद भी तभी आती है जब मम्मी पीठ पर वजन रखती है
एक बच्चे का सम्पूर्ण विकास तभी हो सकता है जब वह स्वच्छंद वातावरण में पले- bआढे बच्चे की पढाई के लिए आवश्यकता है प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण वातावरण की ,जहाँ पानी की कलकल सुने तो पक्षियों की चहचहाहट भी समझे ,जहाँ हवा की सरसराहट होऔर फूलों की महक हो ,बच्चों की खिलखिलाहट हो प्रकृति के नजदीक ही वह जीवन की पढाई पढे जिससे वह संसार और सृष्टि से परिचित हो ,उसकी सुन्दरता से रूबरू हो
आज के बोझिल वातावरण में ,प्रतियोगिताओं की होड़ में वह कही दब सा गया है आज बच्चे पर सिर्फ़ बस्ते का ही बोझ नही है ,उस पर माता -पिता की आकाँक्षाओं का बोझ भी है अभिभावकों के सामाजिक स्तर को बढाने का उत्तर दायित्व भी है इन सब को उसका बाल मन संभाल नही पाताऔर वह आगे बढ़ने की अपक्षा मौत को गले लगाना श्रेयकर समझने लगता ही
प्रतिदिन अख़बारों में दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों में इससे सम्बन्धित समाचार आते ही रहते हैं कहीं कोई बच्चा फेल होने पर ऊँची इमारतों से छलांग लगा देता है तो कोई पंखे से लटक जाता है कोई जहर खा लेता है तो कोई रेल की पटरियां नाप लेता है बच्चे का जीवन समाप्त हो जाता है माता -पिता जीते हुए भी मुर्दे के समान हो जाते हैं ,लेकिन शिक्षा नीति बनाने वालों के कानों पर जूं नहीं रेंगती इन हालातों पर न वे ध्यान देते हैं न सरकार
शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए बच्चे का चारित्रिक विकास करना जो आज किताबी बातें रह गईं हैं चारों ओर छाए भ्रष्टाचार बच्चे के जीवन को निराशा और हताशा से भर दिया है वह निश्चित ही नही कर पाता कि किस रास्ते पर चले
यह सच है कि वह किताबों के बोझ के चाबुक से वह अपना रास्ता जल्दी तै कर लेता है ,लेकिन हो सकता है कि वह मंजिल से पहले ही दम तोड़ दे इसलिए मैं अनुरोध करता हूँ कि इस ओर कुछ सार्थक कदम उठाए जांए जिससे बच्चे का चहुमुखी विकास हो वह सिर्फ़ ज्ञान की मशीन बन कर न रह जाए बस्ते के बोझ को आप ज्ञान की अधिकता समझने की भूल न करें -
मेरा शरीर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था ,तुम्हे धोखा हुआ होगा
"
समाप्त

बस्ते का बोझ बच्चों की उन्नति मैं साधक

साधक

'आने वाले सुंदर कल की तस्वीर हैं बच्चे ,
उज्ज्वल उन्नत देश की तकदीर हैं बच्चे '

जी हाँ ,आज के बच्चे कल का भविष्य हैं आज का बच्चा कल का नागरिक बनता है बच्चों की परवरिश ,उनका रहन -सहन उनकी शिक्षा का देश के भविष्य पर सीधा असर पड़ता है जैसे -जैसे युग बदल रहा है वैसे -वैसे बच्चों की परवरिश ,रहन -सहन और शिक्षा में भी परिवर्तन हो रहे हैं तख्ती से कंप्यूटर का युग आ गया है बच्चों की शिक्षा में भी बडोत्तरी हुई और शिक्षा का स्तर ऊँचा होता गया
जिस तरह समाज में आधुनिकता के साथ पुराने रीति -रिवाज कभी -कभी बीच में अंगडाइयां लेकर अपनी उपस्थिति जता देती हैं उसी तरह कुछ लोग आधुनिक शिक्षा को बोझ बता कर प्रगति में बाधक बन रहे हैं वास्तविकता तो यह है कि माता -पिता ,शिक्षक बच्चों को बस्ते के जिस रूप से अवगत करायेंगे ,वे उसे वही समझेंगे अब ये उनके उपर निर्भर है कि वे बस्ते को बोझ बनाते हैं या जिम्मेदारी ?बचपन ही वह पडाव होता है जहाँ से बच्चे के व्यक्तित्व और जीवन का स्वरूप आरम्भ होता है जब बच्चा अपनी किताबें बस्ते में डाल कर विद्यालय जाता है तो वह उसका बोझ नही अपितु उसमें उसके व्यक्तित्व की परछाईं ,उसके मां-बाप के सपनों को साकार करने का सामान ,समाज के प्रति जिम्मेदारी का सफर नामा होता है माता -पिता का यह सोचना कि बच्चा इतना भारीबस्ता कैसे उटाएगाअपने बच्चे को कमजोर बनाने की नीति है ,उनका लाड -प्यार ही उसकी प्रगति में बाधक बनता है यदि बच्चे को बस्ता भारी लगता है तो उसका समाधान भी है प्रति दिन प्रयोग होने वाली पुस्तकों विद्यालय में संग्रहित करके रखें इससे पुस्तकों का बोझ भी कम होगा और उनका रखरखाव भी टीक होगा
एक तरफ तो माता -पिता बच्चों को आधुनिक बनाने का प्रयत्न करते हैं ,फ़िर पढाई में आधुनिकता और बदावेका विरोध क्यों ? याद रखिए अधिक ज्ञान के लिए ज्ञान के स्रोत भी अधिक होंगे ,कम ज्ञान के स्रोत से बच्चे आगे कैसे बढ़ पाएंगे प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरुकुल में जाते थे शिक्षा के साथ -साथ उन्हें गृह कार्य भी सिखाए जाते थे जंगल से लकडी काटना ,पानी भरना आदि भगवान श्री कृष्ण और श्री राम ने भी ये कार्य किए थे इतिहास गवाह है कि वे महान पुरूष हुए लकडियों के गत्तर uताए तो संसार की विपदाएँ सर पर धर लीं ,पानी भरा तो संसार की विपदाओं को हर दिया
मेहनत का बोझ ही मनुष्य को सफल और महान बनता है बच्चे को बस्ते के बोझ से डराकर कमजोर नही बल्कि अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराकर कल का शिवाजी ,राणाप्रताप ,ऐ .पी .जी .अब्दुलकलाम बनाने का यत्न कीजिए हर पीडी अगली पीडी से यही कहती है -...
'हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के '
देश को आने वाले तूफानों से तभी बचाया जा सकता है जब हमारे बाजू और कंधे मजबूत हों उन पर विद्या धन बोझ नही बल्कि गांडीव हो

समाप्त

मंगलवार, 9 जून 2009

चापलूसी करो -आगे बढो- विपक्ष

विपक्ष

'उद्यमेन ही सिद्ध्यन्ते कार्याणि न मनोर्थे,
नहि प्रविशन्ति सुप्तस्य सिंह स्य मुखे मृगा '

जिस प्रकार बलशाली शेर के मुख में जानवर स्वयम नही घुसते ,उसे इसके लिए स्वयम प्रयत्न करना पड़ता है हम मनुष्य होकर स्वयं अपने बल पर कार्य न करके यदि चापलूसी का सहारा लेते हैं ,यह निश्चय ही शर्मनाक है सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आजतक मनुष्य ने जो भी विकास किया है ,वह सब उसके परिश्रम की देन है
आज विडम्बना यह है कि वह चापलूसी से पदौन्नति प्राप्त करके बहुत खुश है परन्तु याद रखिए यह खुशी थोड़े दिनों की मेहमान है एस प्रकार के लोग निंदा के पात्र बनते हैं वे अपनी नजरों में ही गिर जाते हैं उनका चरित्र ,व्यक्तित्व ,एवं बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है मृग त्रष्णा वश मनुष्य इसके चंगुल में फंसता ही जा रहा है कलियुग में चापलूसी ,माया की तरह व्याप्त है
चापलूसी ,भ्रष्टाचार की जननी है हमें ऐसे दलदल में धकेलती है ,जहाँ व्यक्तित्व ही नष्ट हो जाता है अपने फैसले हम स्वम नही ले सकते कार्य करने कीको खोकर हम परमुखापेक्षी बन जाते हैं अत:चापलूसी त्याग कर परिश्रम करें हम सिकन्दर महनत और लग्न से ही बन सकते हैं महानता प्राप्त होती है -संघर्ष ,आत्म -विश्वास और कतोर साधना से अपने स्वार्थ के लिए दुसरे का हक मत मरो ,चापलूसी करके धोखेबाज मत बनो ,गद्दार मत बनो
ऐ इंसान तू इतना खुदगर्ज न बन ,
उथ जाए परिश्रम और मेहनत से भरोसा ,
तू इतना मतलब परस्त न बन ,
मिल जाएंगी खाक में सारी हसरतें ,
अख्लाके इंसान की कद्र कर ,
ऐ इंसान तू इतना खुदगर्ज न बन '

कर्म की श्रेष्टता से ही भारत के सपूतों ने भारत का निर्माण किया है ,इसकी रक्षा करते हुए आगे बढ़ना चाहिए कृष्ण का कर्म लो ,गांधी का सद्भाव ,विनोबा का त्याग तभी जीवन सार्थक होगा ,सफल होगा ,अनुकरणीय होगा


समाप्त

चापलूसी करो आगे बढो- पक्ष

पक्ष
२१वी सदी में हर कोई एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में लगा रहता है हर कोई किसी भी तरह आगे बढ़ना चाहता है चाहे पैर पकड़ने पडें या gला ऊँचाई या वाहवाही किसे पसंद नही ,इसके लिए थोड़ी सी चापलूसी करने में हर्ज ही क्या है ? आज -कल मुंह में राम बगल में छुरी लिए कौन नही घूमता ?आज चापलूसी कौन नही करता ?हम सभी अपना काम निकलवाने के लिए थोड़ी सी चापलूसी तो करते ही हैं कोई नेताओं की चापलूसी करता है तो कोई अध्यापकों की कोई वकीलों की तो कोई अधिकारीयों की
आज कल चापलूसी बन्दूक से भी बढ़ कर हथियार है जो काम बन्दूक की नोक पर भी नही हो सकता वहचापलूसी क्षण भर में कर देती है प्रश्न उठता है कि आख़िर चापलूसी है क्या ?किसी भी व्यक्ति की इतनी झूठी प्रशंसा करना जिसका वह हकदार नही, चापलूसी कहलाता है चापलूसी में कोई तीर नहीं चलाने पड़ते बस इसके लिए हमारी जीभ रुपी तलवार ही काफी है जो सामने वाले के दिल को भेद देती है \और उसे हमारी बात ,मानने के लिए मजबूर कर दे यही चापलूसी का करिश्मा है
चापलूसी करने के फायदे भी बहुत हैं जहाँ रुपयों से काम हो ,वहाँ चापलूसी से ही काम बन जाता है कोई सिफारिश करवानी है तो चापलूसी से अच्छा नुस्खा नहीं कुछ नाम कमाना है तो आवश्यक है आज हमारे देश में चापलूसी का ही बोलवाला है आज के युग में मेहनत और योग्यता के साथ -साथ चापलूसी भी आवश्यक है सफलता की सीडी चढ़ने के लिए चापलूसी इसके इसके इसके सहारा है बिना इसके मेहनत और काविलियत पानी भरते नजर आते हैं
आज लोग अपने बौस को मस्का लगा कर खुश रखते हैं इसके लिए कुछ उपहारों का ,फलों का ,घर मैं बनी वस्तुओं का ,मिठाई का प्रयोग करना आवश्यक है कुछ और बातें भी याद रखनी जरूरी है ,जैसे -बौस का जन्म दिन ,शादी की सालगिरह ,उनकी पसंद -नापसंद ,बच्चों का जन्म दिन इनके अतिरिक्त तीज -त्योहारों पर उपहारों की सौगातों से वह मक्खन लगता है की आप भी उसकी चिकनाहट देख कर हैरान रह जाएँगे आपको यदि मेरी बात पर विश्वास न हो तो आजमा कर देख लीजिए मौज कीजिए और हमारी कॉम मैं शामिल हो जाईए










रविवार, 7 जून 2009

विद्यार्थी जीवन में राजनीति, छात्रों को पथ भ्रस्त कर देती है

विपक्ष
भला -बुरा न जग में कोई कहलाता है
भीतर का ही दोष ,बाहर नजर आता है ,
किसी को कीचड़ में कमल दिखाई देता है ,
किसी को चाँद में भी दाग नजर आता है
आज सम्पूर्ण विश्व लोकतंत्र की ओर बढ़ रहा है क्योंकि लोकतंत्र ही किसी भी देश अथवा समाज की प्रगति के लिए नितांत आवश्यक है इसी से समाजवाद की स्थापना होती है लोकतंत्र की रक्षा के लिए अनेकानेक नेताओं ने कुर्वानी दी है चंद्रशेखर आजाद ,भगत सिंह ,सुख देव ,राजगुरु यहाँ तक कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने छात्र जीवन से ही राजनीति में रूचि लेनी आरम्भ कर दी थी राजनीति के गुन सीखने के लिए सिकंदर ने अरस्तु को ,चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य को अपना गुरु बनाया राजनीति के अनेक चतुर खिलाड़ियों ने संसार का नेतृत्व किया ,सही दिशा दी और मार्ग दर्शन किया

सरकार ने भी मतदान की उम्र २१ से घटा कर १८ कर दी छात्र जीवन में राजनीति का केवल वही विरोधी है जो लोकतंत्र के विरोधी हैं यदि छात्र जीवन से राजनीति न सीखी जाए तो राजनीति सीखने की सही उम्र क्या है ?राजनीति में पनपा भ्रष्टाचार भी इस बात का साक्ष्य है कि आज -कल राजनीति में कम लोग रूचि ले रहे हैं जो आगे चल कर बेहद खतरनाक हो सकता है

इसे रूचि कर बनाया जाए ,प्रतियोगी बनाया जाए ,अन्यथा विश्व लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा और राजतन्त्र अथवा तानाशाही से विश्व मंच पर हा -हा कार मच जाएगा कुछ लोग ही प्रगति शील ,अग्र्य्नीय और प्रेरक होंगे राजनीति और लोकतंत्र एक दुसरे के पूरक हैं देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत अनुभव अथवा कुछ सीखने की भावना और कुछ कर गुजरने की यही सही उम्र है विश्व में इस बात के अनेक उदाहरन हैं कि छात्र जीवन राजनीति न सीखने वाले लोग नौसिखिए ही रहते है

वर्तमान समय को अभिशापित करने वाले लोग आतंकवाद ,भाई -भतीजावाद एवं समाज में पैदा होने वाली अनेक व्याधियों को जन्म देते हैं क्योंकि इन्होंने कभी भी नियमित कोई सीख ,ज्ञान ,अनुशासन और सहनशीलता सीखी ही नही

आज हमारे पास अच्छे डॉक्टर ,वैज्ञानिक ,प्रशासक उपलब्ध हैं ,कमी है तो केवल अच्छे नेताओं की जिनके आभाव में हमारा जनतंत्र खतरे में है आज राजनीति में स्वस्थ ,सुंदर ,शिष्ट आचरण की कमी है आए दिन संसद में होने वाले अशोभनीय आचरण हमें इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि आज विद्यलों में अच्छे नेता बनाने का भी कोर्स शामिल किया जन चाहिए जिससे राष्ट्र को युवा ,होनहार ,प्रतिभाशाली और आदर्शमय कर्णधार मिल सके ,तभी राष्ट्र का भविष्य सुखमय और उज्ज्वल हो सकेगा कबीरदास ने कहा है _

" आचरी सब जग मिला ,विचारी मिला न कोय

कोटि आचरी बारिये ,जो एक विचारी होय "

समाप्त

शुक्रवार, 5 जून 2009

विद्यार्थी जीवन में राजनीति छात्रों को पथ भ्रष्ट कर देती है

पक्ष

'हम लाए हैं तूफान से किश्ती निकाल के ,
इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के '

ये पंक्तियाँ उन अमर शहीदों कीओर से कही गयी हैं जिन्होंने अपना सर्वस्व बलिदान करके भारत को आजादी दिलाई उन्होंने सोचा था कि हम अपने देश वासियों को एक आजाद देश देकर जा रहे हैं आगे आने वाली पीडी इस देश को संभालेगी तथा दे श को उन्नति के रास्ते पर ले जायेगी

क्या सच में यही हो रहा है ?क्या हम वाकई उन शहीदों की भावना पर खरे उतरे हैं ?नहीं ..........आज समाज की हालत देख कर डर लगने लगता है आए दिन विभिन्न प्रकार के घोटाले -कभी चारा घोटाला ,कभी चीनी घोटाला ,कभी बोफोर्स घोटाला नित नए घोटालों ने राजनीति को भ्रष्टता की चरम सीमा तक पहुंचा दिया है नेताओं की मनमानी ने ,उनके लालच ने ,उनकी अंधी ताकतों के प्रभाव ने विद्यार्थियों को भी इस दलदल की ओर मृग त्रष्णा की भांति आकर्षित किया है विद्यार्थियों की नासमझी नेताओं के कम आतीं हैं वे अपना उल्लू सीधा करने के लिए छात्रों को भविष्य के सुनहरे सपने दिखा कर उनका दुरूपयोग करते हैं

कोलेजों में होने वाले इलेक्शन इस बात का प्रमाण है कि आज युवा वर्ग राजनीति पर लाखों रूपये खर्च करता है और करोडों बनता है सत्य तो यह है कि राजनीति के बहाने वह कूटनीति सीखता है कब ,कैसे ,किसे बलि का बकरा बनाया जाए ,सम्पति को कैसे हडपा जाए ,यही सब सीख कर वह अपनी बुद्धि और शक्ति का दुरूप योग करता है विद्यार्थी परिषद में चुने जाने पर उनका जीवन कुछ ही दिनों में बदल जाता है

चमचमाती गाडियां और बिना मेहनत के मिले रुपयों से जिन्दगी गलत राह पर चल पडती है चमचे छाप लोगों का साथ उन्हें दम्भी और अहंकारी बना देता है ये इलेक्शन उन्हें साम ,दाम ,दंड ,भेद सभी नीतियां सिखा देता है वे छात्र जीवन में ही गुंडा गर्दी में महारथ हासिल कर लेते हैं

सत्य तो यह है कि राजनीति का अर्थ मनमानी या शक्ति का प्रदर्शन नहीं है अपितु निस्वार्थ भावना ,निष्पक्ष विचार और न्याय का साथ देना है परन्तु अफ़सोस की बात है कि आज यही बातें असम्भव हो गईं हैं

महोदय ,आज छात्र जीवन शिक्षा हेतु होना चाहिए वे पहले स्वयं को योग्य बनाएं तब कार्य क्षेत्र में प्रवेश करें क्योंकि अधुरा ज्ञान अज्ञानता से भी भयानक होता है अंत में युवा मित्रों से यही कहना चाहूँगा कि अपने लक्ष्य को पहचानो ,राजनीति के लिए जीवन में और भी मौके मिलेंगे नेता बनो तो देश की भलाई के लिए न कि स्वार्थ के लिए एक पढा -लिखा
व्यक्ति ही एक स्वस्थ और उन्नत देश बना सकता है अत;विद्यार्थी जीवन का सदुपयोग करो और अपने जीवन को राजनैतिक प्रपंचों से पथ भ्रष्ट होने से बचाओ
बात है सीधी मतलब दो ,
समाप्त और समझाने दो
अभी कच्चा है मेरा रस्ता ,
इस पथ को और सजाने दो,
बदल दूंगा तस्वीर देश की ,
मुझे पढ़ कर आने दो


`

शुक्रवार, 29 मई 2009

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बच्चे उद्दंड हो रहे हैं |-पक्ष और विपक्ष

पक्ष
वह बच्चा कक्षा में सिगरेट क्यों पी रहा है?
अरे कक्षा में इतना शोर क्यों हो रहा है ?
अध्यापक परेशान क्यों है?
विद्यालय में पुलिस क्यों आई है?
मैं बताती हूँ ..... ये इक्कीसवीं सदी के विद्यार्थी हैं इन्हे सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों के दंड से बचाकर स्वतंत्र और शक्तिशाली बनाया है

महोदय इसकंप्यूटर युग में विद्यार्थी की सोच भी कंप्यूटर की तरह हो गयी है हर कार्य वे अपनी आयु से एक कदम आगे बढ़ कर करना चाहते हैं वे समझते हैं किवे अपना अच्छा -बुरा समझने लगे हैं अत:उन्हें कुछ समझाया न जाए वे २१वी सदी के विद्यार्थी हैं १९वी सदी के अध्यापकों का अधिकार न थोपा जाए इसे वे एक पीडी का अंतर मानते हैं

अध्यापकों का अपमान करना आज आम घटना हो गयी है जिसका प्रभाव परिवारों पर भी दिखाई देता है कोई अपने माता -पिता को घर से निकलता है तो कोई उनके साथ अभद्र व्यवहार करता है जब पौधे ही अच्छे न होंगे तों फसल अच्छी कैसे होगी आज जब अध्यापक के सर पर नौकरी बचाने की तलवार टांग दी गयी है तों बच्चे उद्दंड क्यों न होंगे बच्चे तों बन्दर की तरह होते हैं उन्हें अनुशासित करने के लिए लकडी नहीं होगी तों अनुशासन कैसे होगा ?

महोदय, सदियों से रीति चली आ रही है कि एक बद मस्त हाथी को महावत ही अपने अंकुश द्वारा नियन्त्रित करता है महावत जितना तजुर्वेकार होगा हाथी को उतना ही नियन्त्रित कर लेगा ताकि वह किसी की हानि न कर सके इसी तरह विद्यार्थियों को भी अनुशासित करने के लिए दंड एवं भय की आवश्यकता है प्रचीन काल से चली गुरु शिष्य परम्परा धीरे -धीरे लुप्त होती जा रही सुप्रीम कोर्ट ने इसे विनाश के कगार तक पहुंचा दिया है जिस तरह रोगी शरीर के लिए कडवी दवाई के साथ -साथ शल्य चिकित्सा की भी आवश्यकता होती है उसी प्रकार उद्दंड बच्चों को सुधारनेके लिए दंड की आवश्यकता होती है जहाँ समझाने से बात न बने वहां भय से काम कार्य जाता है शिक्षक का कर्तव्य बच्चे का चहुँमुखी विकास करना होता है उसके लिए उसे कुछ भी क्यों न करना पड़े

महोदय बढ़ई जब लकडी से कोई सामान बनता है तबउस पर तीखे -नुकीले औजारों से वार करता है उसके इन्हीं वारों से एक साधारण लकडी सुंदर रूप लेकर बाजारों मेंऊँचे दामो पर बिकती है उसी तरह विद्यार्थी एक लक्कड़ है और शिक्षक अपने विद्यार्थी को सुधारने के लिए हर तरह से कार्य करता है ताकि वह एक अच्छा नागरिक बने

उदंडता से किसी का भला नहीं हुआ है प्राचीन काल के कंस रावण शिशुपाल के अंत से कौन परिचित नहीं है ? हिटलर मुसोलिनी, सद्दाम हुसैन का अंत भी सुखद न था के विद्यार्थी का भविष्य क्या होगा ;यह चिंतनीय है सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बच्चों की उदंडता को वह बढावा दिया है कि उसे रोकना असम्भव प्रतीत होने लगा है इस फैसले हो पैर:विचार करने की आवश्यकता है अन्यथा भविष्य क्या होगा यह प्रश्न भयावह है अंत में में यही कहना चाहती हूँ


"हम कौन थे क्या होगये और क्या होंगे अभी
आओं विचारें आज मिलकर ये समस्याएँ सभी "

विपक्ष

रोको न नदियों को बाँध से ,
कलकल कर के बहने दो ,
खुले गगन में बच्चों को ,
खुले पंखों से उड़ने दो ,
बच्चे तो हैं फूलों की क्यारी ,
इन फूलों को मस्त हवा में उड़ने दो
निर्णायक गण मैं इस बात से सहमत नही हूँ कि बच्चे उदंड हो रहे हैं भारत वह देश है जहाँ नेहरू जैसे महान पुरूष हुए जो बच्चों से बेहद प्यार करते थे इसलिए इस देश के कानून का बच्चों के पक्ष में निर्णय करना उचित है
महोदय बदलते समय के साथ साथ सब कुछ बदल रहा है आज अध्यापक और बच्चों का सम्बन्ध गुरु -शिष्य का नही अपितु मित्रता का भी माना जाता है हर सम्बन्ध की कुछ सीमाएं होती हैं परन्तु आज कुछ शिक्षक इन सीमाओं को पार करके विद्यार्थियों के साथ दुर्व्यवहार करने लगे हैं जिससे इन विद्यार्थियों के भविष्य पर ही नही अपितु उनके शारीरिक और मानसिक पटल पर भी प्रभाव पड़ता है
आए दिन हम शिक्षकों के रुद्र रूप के उदाहरन देख रहे हैं कभी शिक्षक किसी की बाजु तोड़ देते हैं तो कही विद्यार्थी को अपमानित करके आत्म हत्या तक के लिए मजबूर कर देते हैं कुछ दिनों पहले ही एक शिक्षक की सजा का घिनौना रूप देखने को मिला जब मात्र छ: वर्ष की बच्ची को ग्रह-कार्य न करने पर उसे निर्वस्त्र करके अपमानित किया गया परिणाम स्वरूप वह इतना डर गयी कि वह विद्यालय के नाम से ही घबराने लगी क्या यह उचित है?
महोदय शिक्षक वह दर्पण है जो विद्यार्थी को सही -गलत की पहचान कराता है ,उसके व्यकितत्व को संवारता है ,भविष्य का उत्तराधिकारी बनाता है परन्तु यदि वह दर्पण स्वयं ही बिगडा और धुंधला होगा तो दुसरे का व्यक्तित्व क्या निखरेगा ?
कुम्हार कितने प्यार से मिट्टी गूँथ कर फ़िर उसे चाक पर चदाता है और अपने कोमल स्पर्श से वर्तनों को आकार देता है ठीक वैसे ही अध्यापक भी प्यार से विद्यार्थी को संवारता है न कि कठोरता से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हमें सहमति देनी चाहिए ,लेकिन यह ध्यान भी रखना होगा कि विद्यार्थी को गलत राह में भटकने से रोकने के लिए विनम्रता और सहजता का रास्ता अपनाना चाहिए हम गौतम और गांधी के देश वासी हैं संयम हर मुस्किल से लड़ने का हथियार था ,है और रहेगा
बच्चे आने वाले कल का भविष्य हैं जब भविष्य ही सहमा हुआ होगा तो देश की उन्नति कैसे होगी हमे तो मुस्कराता हुआ उज्ज्वल भविष्य चाहिए

नाया सवेरा आने दो ,किरणों से किरने मिलने दो
नव ऋतू के आगमन में नव कोंपलें खिलने दो
प्रेम भाव के मंद -मंद झोंकों को तुम बहने दो
नन्हें -नन्हें फूलों को झटको न ,महकने दो

समाप्त