सरकार ने भी मतदान की उम्र २१ से घटा कर १८ कर दी छात्र जीवन में राजनीति का केवल वही विरोधी है जो लोकतंत्र के विरोधी हैं यदि छात्र जीवन से राजनीति न सीखी जाए तो राजनीति सीखने की सही उम्र क्या है ?राजनीति में पनपा भ्रष्टाचार भी इस बात का साक्ष्य है कि आज -कल राजनीति में कम लोग रूचि ले रहे हैं जो आगे चल कर बेहद खतरनाक हो सकता है
इसे रूचि कर बनाया जाए ,प्रतियोगी बनाया जाए ,अन्यथा विश्व लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा और राजतन्त्र अथवा तानाशाही से विश्व मंच पर हा -हा कार मच जाएगा कुछ लोग ही प्रगति शील ,अग्र्य्नीय और प्रेरक होंगे राजनीति और लोकतंत्र एक दुसरे के पूरक हैं देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत अनुभव अथवा कुछ सीखने की भावना और कुछ कर गुजरने की यही सही उम्र है विश्व में इस बात के अनेक उदाहरन हैं कि छात्र जीवन राजनीति न सीखने वाले लोग नौसिखिए ही रहते है
वर्तमान समय को अभिशापित करने वाले लोग आतंकवाद ,भाई -भतीजावाद एवं समाज में पैदा होने वाली अनेक व्याधियों को जन्म देते हैं क्योंकि इन्होंने कभी भी नियमित कोई सीख ,ज्ञान ,अनुशासन और सहनशीलता सीखी ही नही
आज हमारे पास अच्छे डॉक्टर ,वैज्ञानिक ,प्रशासक उपलब्ध हैं ,कमी है तो केवल अच्छे नेताओं की जिनके आभाव में हमारा जनतंत्र खतरे में है आज राजनीति में स्वस्थ ,सुंदर ,शिष्ट आचरण की कमी है आए दिन संसद में होने वाले अशोभनीय आचरण हमें इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि आज विद्यलों में अच्छे नेता बनाने का भी कोर्स शामिल किया जन चाहिए जिससे राष्ट्र को युवा ,होनहार ,प्रतिभाशाली और आदर्शमय कर्णधार मिल सके ,तभी राष्ट्र का भविष्य सुखमय और उज्ज्वल हो सकेगा कबीरदास ने कहा है _
" आचरी सब जग मिला ,विचारी मिला न कोय
कोटि आचरी बारिये ,जो एक विचारी होय "
समाप्त
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें