बुधवार, 15 जुलाई 2009

लोक लाहु परलोक निबाहू

महान कवि ,भक्त ,समाज सुधारक गोस्वामी तुलसीदास की रचना "राम चरित मानस "के पढ़ने और सुनने से ही व्यक्ति उन भावनाओं के सागर में बहने लगता है जहाँ हर रस ,हर भावः ,हर संवेदना अपने उत्कृष्ट रूप में नजर आती है |कहीं वात्सल्य का उमड़ता सागर है तो कहीं श्रृंगार की मादकता ,कहीं त्याग और कर्तव्य की पराकाष्ठा है तो कहीं भक्ति में पूर्ण समर्पण है |कहीं भ्रातत्व प्रेम का उमड़ता अनुराग है तो कहीं समाज हित में उठाए कठोर व्रत हैं |कहीं युद्ध की विभीषिका है तो उसी युद्ध में संस्कारों की मर्यादा भी है |

मर्यादा का वह रूप जिसकी तुलना अन्यत्र दुर्लभ ही नहीं असंभव है |कहा गया है आपत्ति काले मर्यादा अस्ति "लेकिन राम चरित मानस वह ग्रन्थ है जिसमें आपत्तियों में ,विषम परिस्थितियों में ,भी मर्यादाएं यथा स्थान हैं |वहां कहीं कमी नहीं आई है बल्कि मर्यादाओं का सर्वोत्तम रूप उभर कर सामने आया है |इस ग्रन्थ ने अवतारी को भी मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया |

जहाँ कहीं आज भी राम महिमा का स्मरण होता है ,बखान होता है ,,अखंड -पाठ होता है तो वह माहौल बनता है कि कलियुगी स्त्री -पुरूष जीते जी कुछ क्षणों के लिए ही सही उस स्वर्ग का आनंद महसूस करते हैं जिसका वर्णन सहज सम्भव नहीं |श्रृद्धा ,प्रेम ,भक्ति ,विश्वास ,आस्था की वैतरणी में दुबकी लगा लगा कर परम आनंद को प्राप्त करते हैं |तुलसीदास ने आधुनिक काल में लोगों के लिए स्वर्ग के आनंद का सम्पूर्ण प्रावधान कर दिया है |ढोलक ,मंजीरे ,करताल के साथ जब मानस का पाठ होता है तो श्रवण करनेवाला उस काल की अयोध्या में पहुँच ईश्वर का दर्शन लाभ प्राप्त करता है |वात्सल्य ,करुना ,दया ,ममता आदि की भावनाएं तरंगित होती हैं जो श्रोताओं को अपने आगोश में समा लेती हैं |

कार्य -क्रम की समाप्ति पर श्रद्धालु जब प्रसाद ग्रहण कर लेते हैं और पुन :कलियुग में लौट आते हैं तो तुलसीदास की भक्ति भावना से कही गयी बात _

"सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू

लोक लाहु परलोक निबाहू "

का वह रूप देखने को मिलता है ,जिसकी कल्पना उन्होंने स्वपन में भी नहीं की होगी |श्रद्धालुओं द्वारा चढाया गया चढावा सबकी स्वार्थ द्रष्टि का केन्द्र होता है |जिन पंडितों ने राम कथा का परम आनंद प्रदान किया था ,वे इस आर्थिक आनंद पर टूट पड़ते हैं |आपस में लड़ते हैं ,अपने अपने हक़ का बखान करते हैं ,अपशब्दों का खुला प्रदर्शन करते हैं जिस पर सहज विशवास नही होता |

सोमवार, 6 जुलाई 2009