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मंगलवार, 3 मार्च 2009

आंसू

आँसू भी क्या चीज है ! कैसा पदार्थ बनाया है भगवान ने जिसका न स्रोत पता न उद्गम| भावनाओं का गुबार उठा और बह चले आँसू ,खुशी में भी आँसू में भी आँसू ,प्यार में भी आँसू , इनकार में भी आँसू ,मिलन में भी आँसू, विछोह
में भी आँसू |

आँसू सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम हैं जिसे भाषा में कह सके, वह कहने में समर्थ है आँसू| जिस तरह उमड़ती -घुमड़ती घटाएँ बरस कर सम्पूर्ण वातावरण को स्वच्छ कर देती हैं ,माहौल को सुखमय बना देती हैं उसी तरह आंसू भी बरस कर दिल के गुबार को निकाल देते हैं |अब ये गुबार चाहे किसी भी भावना की उपज क्यों न हों |दुख हो या स्म्रति ,प्यार हो या गम दिल का भारीपन तो निकल ही जाता है |आंसू आए की सब कुछ हल्का,सुंदर, साफ़| इनका खारीपन समुद्र की गहराई से ही आया होगा |समुद्र रत्नाकर के साथ -साथ पता नहीं कितने विषैले जीव जन्तुओं को समेटे रहता है |इसी से उसका पानी खारा हो जाता है |आंसू भी भावनाओं की उमड़ -घुमड़ से द्वेष ,ईष्या आदि भावो के समिश्रण से खारी हो जाता है |ये बह जाते हैं तो निकल जाता है भावनाओं का ज्वार और शांत हो जाता है मन -मस्तिस्क और साफ हो जाती है आँखें |
हाँ अधिकता किसी चीज की अच्छी नहीं होती |ज्यादा आंसू बहने से आँखें तो लाल हो ही जाती हैं ,सर भारी हो जाता है |शरीर अस्वस्थ हो जाता है ज्वर के साथ -साथ पीड़ा भी सताने लगती है सीमित सब कुछ अच्छा |रहीम जी ने कहा है कि रहिमन विपदा हु भली जो थोरे दिन होय 'अति की सीमा को पर न करें |इतिहास गवाह है कि ये सैलाब लाने में भी समर्थ हैं |
हैं कोई ऐसे माता -पिता जो बच्चों के आंसू देख कर तडप न उठे |मां की आंखों के आंसू क्या कोई झेल सका है |कोई भी प्रेमी क्या प्रेमिका के आंसू देख कर चुप बैठ सका है |इन आंसुओं ने महा भारत करा दिए |दुसरे के आंसुओं से डरकर रहिए |आंसुओं की आह बुरी होती है |न रोएये न रुलएये |रोएँ तो सभंल कर रोएँ |

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

आख़िर

"पापा मुझे दो हजार रुपए चाहिए "मनोज ने अपने पिता ग्रह मंत्री श्री नारायण सिंह से कहा |
"लो बेटा "पिता ने जेब मैं हाथ डाला और बिना गिने ही नोटों की गड्डी उसे थमा दी |पिता को अनेक चुम्बनों का उपहार देकर ,मनोज खुशी से उछलता हुआ वहां से चला गया |
मीरा देवी यह सब देख कर अवाक् रह गयी और आज फ़िर चाहते हुए भी पति से उलझ पडी कि आपने बिना पूछे रुपए क्यों दिए |वह क्या करता है ,कहाँ जाता है ?उसे रुपए क्यों चाहिए ?यह पूछना ही चाहिए था |
पति ने लापरवाही से क्रोध भरी नजर पत्नी पर डाली और कहा "जवान लड़का है उससे पूछना क्या ?जो करेगा ,ठीक ही करेगा "
लेकिन बच्चे को इतने रुपए नही देने चाहिए "मीरा देवी ने प्रतिवाद किया |
तो क्या उसे दो रुपए दे देता "वह किसी क्लर्क का बेटा नहीं गृह मंत्री का बेटा है \नारायण सिंह ने गर्व से गर्दन झटकी और चले गये
जिस दिन से पति गृह मंत्री बने उस दिन से जनता के शोषण का पैसा निरंतर घर की सम्रद्धि को बढाता चला जा रहा था |लेकिन मीरा देवी इससे खुश थी |एक प्रधानाचार्य की बेटी जो थी ,उत्तम संस्कारों में पली वह इन नवीन संस्कारों को अपना पा रही थी |निरंतरयह शोषण का पैसा उनका मानसिक शोषण कर रहा था |वह प्रत्येक छणएक घुटन सी महसूस करती थी ,एस आलीशान बंगले में ,जिसमें सुख सुविधायों की कोई कमी थी |पति को नाश्ता कराते समय उन्होंने बच्चों का पुनः प्रसंग उठाया की आप बंच्चों को सोच -समझ कर सुविधाएँ दें क्योंकि ये सुविधाएँ बच्चों को सही रास्ते से भटका सकती है |नारायण सिंह झल्ला पडे |तुम स्त्रियों से भगवान बचाए |सुख में भी दुखी कि बच्चे कहीं बिगड़ जायें |हमेशा अनिष्ट की आशंका से दुखी \पैसा हो तो दुखी हो तो दुखी हैं ही |अरे पैसा है तुम स्वयं मौज करो और बच्चों को भी करने दो ...|लेकिन तुम ख़ुद चैन से रहती हो और रहने देती हो |आख़िर कलम घिसने वाले की औलाद जो हो वही मेरे बेटे को बनाना चाहती हो |पिता का प्रसंग आने पर मीरा देवी मन में उठते हुए ज्वार को रोक कर वहां से उठ गईं |
प्रत्येक छण मीरा देवी का चिंता में गुजरता था | पति का साथ पुत्र का |भौतिक साथ तो साथ नहीं कहा जा सकता ;जब तक वह मानसिक आध्यात्मिक स्तर पर साथ हो |उसे कभी -कभी घ्रणा होती अपने पति से लेकिन भारतीय नारी के संस्कारों से मंडित वह नारायण सिंह का साथ देती \नारायण सिंह भी यह बात बखूबी जानते थे |
"आज मुझे राजस्थान में आयी बाद् का दौरा करने जाना है ,दो -चार दिन लग जायेगे "नारायण सिंह ने मीरा देवी से कहा |
"कपडे और आपका जरूरी सामान रखवा देती हूँ \कब तक जायेगे ?
"यही कोई दस बजे,
मीरा देवी के मन में अनेक शंकाओं ने जन्म लिया |उन्होंने सविनय पूछा
मैं भी साथ चलूँ "वहां भाई के यहाँ भी होती आउंगी |
चलो नारानयन सिंह ने हामी भरी
मीरा देवी खुश हुई ,भाई यहाँ तो जाने का बहाना था |वह सचमुच में बाड ग्रस्त लोगों की मदद करना चाहती थी
बाढ़ की भयंकरता को देख कर मीरा मीरा देवी हैरान रह गईं बच्चे ,बूढे जवान स्त्री पुरुष सभी सुरक्षित स्थान के खोजमेँ भटक रहे थे . सबके चेहरों पर विषाद की रेखा थी |औरतें छोटे बच्चों को छाती से चिपकाए और जरूरी सामान को सर पर रखे थी |एसीस्थिति मेंभी अपने कर्तव्य को निभाने की भरपूर कोशिस कररही थी |पशु तो पानी में बहते ही चले जा रहे थे |जहाँ मानव की रक्षा नहीं वहाँ पशुओं की कौन कहे ?घरेलू सामान पानी के बहाव के साथ बहा जा रहा था |घर के लोग असहाय से किंकर्तव्य विमूढ़ से खडे थे |मीरा देवी का ह्रदय भर आया |अविरल अश्रु धारा बह चली |उनका ह्रदय इस भयानक द्रश्य को देख कर हा -हा कार कर उठा |चारों ओर पानी ही पानी जैसे इस क्षेत्र में प्रलय आ गयी हो |अभी तक उन्होंने पानी का मनोहारी रूप ही देखा था ,जो अम्रत के समान जीवन देने वाला होता था |प्रक्रति के सौन्दर्य को अपनी छटा से मनोहारी बनाने वाला होता था लेकिन .....आज पानी का जो प्रलयंकारी रूप देखा उससे वे स्तब्थरह गईं |
नारायण सिंह भी इस द्रश्य से विचलित नजर आ रहे थे ,लेकिन फिर भी बीच -बीच में फलों का जूस व् चाय की चुस्कियां लेना न भूले थे |आज के भयावह द्रश्य ने नारायण सिंह जैसे व्यक्ति को भी हिला कर रख दिया था |आखिर वह भी इंसान हैं ,उनके दिल में भी भावनाएं हैं ,यह और बात है कि कुछ भौतिक सुख इन भावनाओं पर हावी हो जाते हैं |यदा -कदा वे इस कठोर आवरण को भेद कर प्रकट हो जाती हैं और मानव को इस वेग में बहा ले जाती हैं |वास्तव में ये भावनाएं ही हैं जो मानव को एक महा मानव भी बना देती हैं |इन भावनाओं के संवेग से ही व्यक्ति बडे से बडा कार्य भी सहजता से कर जाता है |यदि ये भावनाएं न होती तो शायद यह संसार इतना सुंदर न होता |
पति को परेशान व् विचलित देख कर मीरा देवी ने सहानुभूति का हाथ पति के हाथ पर रखा तो उनकी आखें छलक उठी ,मीरा देवी देख रही थी कि जहाँ कलिंग की रणभूमि की भयाबहता एक सम्राट को सन्यासी बना सकती है तो उनके पति को भी यह बाढ़ का भयावह द्रश्य कुछ बना कर ही छोडेगा |
दुसरे दिन प्रात- काल समाचार पत्र में मुख्य समाचार थे -ग्रह मंत्री ,नारायण सिंह ने त्याग पत्र दिया .....बाढ़ पीडितों की सहायता के लिए अपनी सम्पत्ति का दान किया .......पत्नी सहित ग्रह मंत्री शरणार्थी कैम्पों में व्यस्त |
आखिर वह भी इंसान हैं |