मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

यादें

स्मृतियों की गुफाओं मेंछुपी यादें ही तो जीवन का सहारा हैं .कभी निराशा में आकर ये सहारा दे जाती हैं .जीवन का मतलब सिखा जाती हैं .आगे बढ़ने की प्रेरणा दे जाती हैं .कभी बातोंका सिलसिला बन जाती हैं ,जो कभी रुलाती हैं तो कभी हंसाती हैं .रोने से दिल हल्का हो जाता है जैसे हमने उस व्यक्ति को याद करउसे अश्रुओं की श्रधांजली देकर नमन किया हो .कभी हंस कर श्रद्धा सुमन चढाए हो तो आशीर्वाद मिलना स्वाभाविक है
यादें न होती तो लगता जैसे सबकुछ होते हुए भी मस्तिष्क खाली है .हर बार लाख लाख धन्यवाद देती हूँ उस परम पिता को जिसने मस्तिष्क की ऐसी रचना की जिसमें न फ्लोपी की जरूरत है न इलेक्ट्रिसिटी की
याद जब आती हैं तो शरीर का रोम रोम उस याद आने वाले के प्रति कर्तग्यता से भर जाता है .जो कभी दुखद घटनाएँ भी थी वह भी आज सुखद बन जाती हैं क्योकि दुखद घटनाओं से निकल कर हम खुशी की ओर बढे
यादें उस गुफा की तरह होती हैं जिसकी अंधकारमयी रचना में सब कुछ समाया हुआ भी दिखाई नहीं देता लेकिन समय समय पर अपनी उपस्थिति अवश्य दर्ज करा देता है
यादें न होती तो हम किसी को याद कैसे करते .वे उदाहरन और आदर्श कैसे बनते ?यादें स्थाई भावः के साथ हर छणहमारे साथ होती हैं .भूलने की आदत बुरी हो सकती है लेकिन याद रखने की आदत को कभी किसी ने बुरा नहीं कहा।
याद रहना ,याद करना ,यादों में बसा लेना आम बात है .कुछ यादगार पल ही तो जिन्दगी का संबल हैं ,कभी हमारी जिन्दगी भी याद की जाए ,हम भी यादों में रहें तो कितना अच्छा हो .ऐसा होगा न !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें