शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

सबला जीवन :
रैड लाइट देख कर तेजी से चल रही कार के यकायक ब्रेक लग गए और कुछ रुकने का समय मिला .इधर
--उधर नजर दौडाई तो हैरान रह गयी .जब अपनी ही बगल में एक रिक्शागादी को रुकते देखा .एक तीस पी तीस वर्ष की अवस्था की औरत उत्तर प्रदेशीय ढंग से पहनी धोती में कांछ लगाये रिक्सा चला रही थी .पीछे के खुले हिस्से में दो बच्चे बैठे कुछ खा रहे थे .एक तसला एक झाडू कुछ बर्तन उसमे रखे थे .वह महिला पीछे मुड करबच्चों को कुछ समझा रही थी .बच्चो के हिलते सिर और चमकती आंखे यह बता रही थी कि मां की बात समझ आ रही है .हरी बत्ती हुई और वह महिला मेरी कर स्टार्ट होने से पहले ही तेजी से आगे निकल गयी .में आगे बडी प्रसन्नता से मैंएक उर्जा सी महसूस कररही थी .आज कौन कह सकता है किऔरत अबला है .वह हर छेत्र में जूझती नजर आती है .चाहे घर हो या बाहर,बच्चे हों या पति,पडोसी हों या रिश्तेदार हर मोड़ पर वह सशक्त खडी नजर आती है .कोई भी कार्य हो -चाहे सेवा का हो या परिवार के पालन पोश्द का ,किसी कि सहायता करने का हो वह आज भी अपनी कठोर कीकमाए से कुछ बचा कर दुसरे की सहायता भी नजर आती है .इतनी जुझारू ,कर्मठ औरत की आजभी एईसी क्यों ?माना कुछ परिवर्तन आया है लेकिन आज भी औरत परिवार में,समाज में उपेछितही है । यह
सोच करमन परेशान हो जाता है लेकिन एक संतोष है कि अब वह पंख फैला चुकी है वह अबला नहीं ,निरीह नहीं ,बेचारी नहीं .वह सबला है ,समर्थ है योग्य है .यही उसकी पहचान है

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