आँसू भी क्या चीज है ! कैसा पदार्थ बनाया है भगवान ने जिसका न स्रोत पता न उद्गम| भावनाओं का गुबार उठा और बह चले आँसू ,खुशी में भी आँसू में भी आँसू ,प्यार में भी आँसू , इनकार में भी आँसू ,मिलन में भी आँसू, विछोह
में भी आँसू |
आँसू सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम हैं जिसे भाषा में कह सके, वह कहने में समर्थ है आँसू| जिस तरह उमड़ती -घुमड़ती घटाएँ बरस कर सम्पूर्ण वातावरण को स्वच्छ कर देती हैं ,माहौल को सुखमय बना देती हैं उसी तरह आंसू भी बरस कर दिल के गुबार को निकाल देते हैं |अब ये गुबार चाहे किसी भी भावना की उपज क्यों न हों |दुख हो या स्म्रति ,प्यार हो या गम दिल का भारीपन तो निकल ही जाता है |आंसू आए की सब कुछ हल्का,सुंदर, साफ़| इनका खारीपन समुद्र की गहराई से ही आया होगा |समुद्र रत्नाकर के साथ -साथ पता नहीं कितने विषैले जीव जन्तुओं को समेटे रहता है |इसी से उसका पानी खारा हो जाता है |आंसू भी भावनाओं की उमड़ -घुमड़ से द्वेष ,ईष्या आदि भावो के समिश्रण से खारी हो जाता है |ये बह जाते हैं तो निकल जाता है भावनाओं का ज्वार और शांत हो जाता है मन -मस्तिस्क और साफ हो जाती है आँखें |
हाँ अधिकता किसी चीज की अच्छी नहीं होती |ज्यादा आंसू बहने से आँखें तो लाल हो ही जाती हैं ,सर भारी हो जाता है |शरीर अस्वस्थ हो जाता है ज्वर के साथ -साथ पीड़ा भी सताने लगती है सीमित सब कुछ अच्छा |रहीम जी ने कहा है कि रहिमन विपदा हु भली जो थोरे दिन होय 'अति की सीमा को पर न करें |इतिहास गवाह है कि ये सैलाब लाने में भी समर्थ हैं |
हैं कोई ऐसे माता -पिता जो बच्चों के आंसू देख कर तडप न उठे |मां की आंखों के आंसू क्या कोई झेल सका है |कोई भी प्रेमी क्या प्रेमिका के आंसू देख कर चुप बैठ सका है |इन आंसुओं ने महा भारत करा दिए |दुसरे के आंसुओं से डरकर रहिए |आंसुओं की आह बुरी होती है |न रोएये न रुलएये |रोएँ तो सभंल कर रोएँ |
मंगलवार, 3 मार्च 2009
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