विपक्ष
'उद्यमेन ही सिद्ध्यन्ते कार्याणि न मनोर्थे,
नहि प्रविशन्ति सुप्तस्य सिंह स्य मुखे मृगा '
जिस प्रकार बलशाली शेर के मुख में जानवर स्वयम नही घुसते ,उसे इसके लिए स्वयम प्रयत्न करना पड़ता है हम मनुष्य होकर स्वयं अपने बल पर कार्य न करके यदि चापलूसी का सहारा लेते हैं ,यह निश्चय ही शर्मनाक है सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आजतक मनुष्य ने जो भी विकास किया है ,वह सब उसके परिश्रम की देन है
आज विडम्बना यह है कि वह चापलूसी से पदौन्नति प्राप्त करके बहुत खुश है परन्तु याद रखिए यह खुशी थोड़े दिनों की मेहमान है एस प्रकार के लोग निंदा के पात्र बनते हैं वे अपनी नजरों में ही गिर जाते हैं उनका चरित्र ,व्यक्तित्व ,एवं बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है मृग त्रष्णा वश मनुष्य इसके चंगुल में फंसता ही जा रहा है कलियुग में चापलूसी ,माया की तरह व्याप्त है
चापलूसी ,भ्रष्टाचार की जननी है हमें ऐसे दलदल में धकेलती है ,जहाँ व्यक्तित्व ही नष्ट हो जाता है अपने फैसले हम स्वम नही ले सकते कार्य करने कीको खोकर हम परमुखापेक्षी बन जाते हैं अत:चापलूसी त्याग कर परिश्रम करें हम सिकन्दर महनत और लग्न से ही बन सकते हैं महानता प्राप्त होती है -संघर्ष ,आत्म -विश्वास और कतोर साधना से अपने स्वार्थ के लिए दुसरे का हक मत मरो ,चापलूसी करके धोखेबाज मत बनो ,गद्दार मत बनो
ऐ इंसान तू इतना खुदगर्ज न बन ,
उथ जाए परिश्रम और मेहनत से भरोसा ,
तू इतना मतलब परस्त न बन ,
मिल जाएंगी खाक में सारी हसरतें ,
अख्लाके इंसान की कद्र कर ,
ऐ इंसान तू इतना खुदगर्ज न बन '
कर्म की श्रेष्टता से ही भारत के सपूतों ने भारत का निर्माण किया है ,इसकी रक्षा करते हुए आगे बढ़ना चाहिए कृष्ण का कर्म लो ,गांधी का सद्भाव ,विनोबा का त्याग तभी जीवन सार्थक होगा ,सफल होगा ,अनुकरणीय होगा
समाप्त
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